गुरु अमर दास जी (1479 – 1574)

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तीसरे गुरु की उत्पत्ति:

गुरु अमर दास ने एक कट्टर हिंदू के रूप में जीवन शुरू किया। वह बड़ा होकर हिंदू देवता विष्णु का भक्त बन गया। अमर दास ने मनसा देवी से शादी की और उनकी एक बेटी दानी थी। उनके भाई, मानक चंद का एक बेटा, जस्सू था, जिसने गुरु अंगद देव की बड़ी बेटी, अमरो से शादी की थी। 61 साल की उम्र में अमर दास ने अमरो को नानक के भजन गाते हुए सुना और सिख धर्म के अनुयायी बन गए।

रूपांतरण और उत्तराधिकार:

अमर दास ने खुद को खडूर में गुरु अंगद देव के सामने प्रस्तुत किया और एक उत्साही भक्त बन गए। वह प्रतिदिन गोइंदवाल से खडूर तक गुरु की रसोई के लिए जलाऊ लकड़ी और पानी ले जाते थे। अमर दास की एक और बेटी, भानी और दो बेटे, मोहन और मोहरी थे। गुरु अंगद देव ने अमर दास से अनुरोध किया कि वह अपने परिवार को गोइंदवाल ले जाएं, और वहां रातें रुकें ताकि उन्हें दिन में केवल एक बार खडूर में पानी ले जाना पड़े। अमर दास ने 12 वर्षों तक सिख संगत की अथक सेवा की। उनकी निस्वार्थ सेवा ने गुरु अंगद का विश्वास अर्जित किया, जब 48 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई, तो उन्होंने 73 वर्ष की आयु के अमर दास को अपना उत्तराधिकारी और सिखों का तीसरा गुरु नियुक्त किया।

प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटना:

अंगद देव के छोटे बेटे दत्तू ने अपने लिए उत्तराधिकार का दावा किया और गुरु अमर दास के अधिकार को चुनौती दी। उसने बड़े आदमी को जाने के लिए कहा और फिर उसे अपने पैर से लात मारते हुए कहा कि जब वह केवल एक पुराना नौकर था तो वह गुरु कैसे हो सकता है। गुरु अमर दास ने विनम्रतापूर्वक क्रोधित युवक को शांत करते हुए कहा कि उसकी बूढ़ी हड्डियाँ सख्त हो गई हैं और हो सकता है कि इससे उसे चोट पहुँची हो। अमर दास पीछे हट गए और खुद को गहरे ध्यान में बंद कर लिया। उन्होंने दरवाजे पर एक तख्ती लटका दी, जिसमें लिखा था कि दरवाजे में प्रवेश करने वाला कोई भी व्यक्ति उनका सिख नहीं है, न ही उनका गुरु होगा। जब सिखों को उसके ठिकाने का पता चला, तो उन्होंने अपने गुरु की उपस्थिति और नेतृत्व का अनुरोध करने के लिए दीवार तोड़ दी।

सिख धर्म में योगदान:

गुरु अमर दास और अंगद देव की विधवा खिवी ने लंगर की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए मिलकर काम किया, गुरु की सामुदायिक रसोई से मुफ्त भोजन परोसा जाता था। उन्होंने आदेश दिया कि जो भी उनसे मिलने आए, उन्हें सबसे पहले खाना खिलाया जाए और उन्होंनेपंगत संगतकी अवधारणा को लागू किया, जो शरीर और आत्मा दोनों का पोषण है, इस बात पर जोर दिया कि सभी लोग लिंग, पद या जाति की परवाह किए बिना समान रूप से एक साथ बैठें। गुरु ने महिलाओं की स्थिति को ऊपर उठाया और उन्हें घूंघट त्यागने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने पुनर्विवाह का समर्थन किया और सती प्रथा की निंदा की, एक हिंदू प्रथा जिसमें एक विधवा को उसके पति की चिता पर जिंदा जलाने के लिए मजबूर किया जाता था।

गोइंदवाल:

गोइंदवाल में अपनी वर्षों की सेवा के दौरान, अमर दास ने एक टाउनशिप स्थापित करने में मदद की। जब वे गुरु बने तो उन्होंने प्रतिदिन खडूर जाना बंद कर दिया और स्थायी रूप से गोइंदवाल चले गये। उन्होंने लोगों की पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए नदी तट पर 84 सीढ़ियों वाला एक कुआँ बनवाया। गुरु ने प्रांत के अनुसार मंजीज़, या सिख धर्म की सीटें भी स्थापित कीं। अपने जीवनकाल के दौरान गुरु अमर दास ने आनंद साहिब सहित प्रेरणादायक काव्य पद्य की 7,500 पंक्तियाँ लिखीं, जो बाद में गुरु ग्रंथ साहिब में ग्रंथ का हिस्सा बन गईं। उन्होंने अपने दामाद जेठा को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और उसका नाम राम दास रखा, जिसका अर्थ हैभगवान का सेवक।

महत्वपूर्ण तिथियाँ और संबंधित घटनाएँ:

तारीखें नानकशाही कैलेंडर से मेल खाती हैं।

जन्म: बासर्के – 23 मई, 1479, अमर दास का जन्म वैशाख महीने में शुक्ल पक्ष के 14वें दिन की सुबह से पहले माता, लखमी (भकत) और पिता, तेज भान के यहाँ हुआ।

विवाह: सांखत्रा – 8 जनवरी, 1503, अमर दास ने देवी चंद की बेटी मनसा देवी (?-1569) से विवाह किया। उनकी बेटियाँ, दानी (1530), और भानी (1535-1598), और बेटे, मोहन (1536), और मोहरी (1539) हैं।

गुरु अंगद देव से मुलाकात: खडूर – 1532, अमर दास ने गुरु नानक के भजन सुने, गुरु अंगद देव से मिले और सिख धर्म के कट्टर अनुयायी बन गए।

गुरु के रूप में उद्घाटन: खडूर – 16 अप्रैल, 1152, गुरु अंगद देव ने अमर दास को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

गोइंदवाल की स्थापना: 1559, गुरु अमर दास ने 84 सीढ़ियों वाला एक कुआँ बनवाया।

मृत्यु: गोइंदवाल – 16 सितंबर, 1574, गुरु अमर दास ने भानी के पति, जेठा को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और उनका नाम राम दास रखा।