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ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
सलोक महला ९ ॥
गुन गोबिंद गाइओ नही जनमु अकारथ कीनु ॥
कहु नानक हरि भजु मना जिह बिधि जल कउ मीनु ॥१॥
बिखिअन सिउ काहे रचिओ निमख न होहि उदासु ॥
कहु नानक भजु हरि मना परै न जम की फास ॥२॥
तरनापो इउ ही गइओ लीओ जरा तनु जीति ॥
कहु नानक भजु हरि मना अउध जातु है बीति ॥३॥
बिरधि भइओ सूझै नही कालु पहूचिओ आनि ॥
कहु नानक नर बावरे किउ न भजै भगवानु ॥४॥
धनु दारा स्मपति सगल जिनि अपुनी करि मानि ॥
इन मै कछु संगी नही नानक साची जानि ॥५॥
पतित उधारन भै हरन हरि अनाथ के नाथ ॥
कहु नानक तिह जानीऐ सदा बसतु तुम साथि ॥६॥
तनु धनु जिह तो कउ दीओ तां सिउ नेहु न कीन ॥
कहु नानक नर बावरे अब किउ डोलत दीन ॥७॥
तनु धनु स्मपै सुख दीओ अरु जिह नीके धाम ॥
कहु नानक सुनु रे मना सिमरत काहि न रामु ॥८॥
सभ सुख दाता रामु है दूसर नाहिन कोइ ॥
कहु नानक सुनि रे मना तिह सिमरत गति होइ ॥९॥
जिह सिमरत गति पाईऐ तिह भजु रे तै मीत ॥
कहु नानक सुनु रे मना अउध घटत है नीत ॥१०॥
पांच तत को तनु रचिओ जानहु चतुर सुजान ॥
जिह ते उपजिओ नानका लीन ताहि मै मानु ॥११॥
घट घट मै हरि जू बसै संतन कहिओ पुकारि ॥
कहु नानक तिह भजु मना भउ निधि उतरहि पारि ॥१२॥
सुखु दुखु जिह परसै नही लोभु मोहु अभिमानु ॥
कहु नानक सुनु रे मना सो मूरति भगवान ॥१३॥
उसतति निंदिआ नाहि जिहि कंचन लोह समानि ॥
कहु नानक सुनि रे मना मुकति ताहि तै जानि ॥१४॥
हरखु सोगु जा कै नही बैरी मीत समानि ॥
कहु नानक सुनि रे मना मुकति ताहि तै जानि ॥१५॥
भै काहू कउ देत नहि नहि भै मानत आन ॥
कहु नानक सुनि रे मना गिआनी ताहि बखानि ॥१६॥
जिहि बिखिआ सगली तजी लीओ भेख बैराग ॥
कहु नानक सुनु रे मना तिह नर माथै भागु ॥१७॥
जिहि माइआ ममता तजी सभ ते भइओ उदासु ॥
कहु नानक सुनु रे मना तिह घटि ब्रहम निवासु ॥१८॥
जिहि प्रानी हउमै तजी करता रामु पछानि ॥
कहु नानक वहु मुकति नरु इह मन साची मानु ॥१९॥
भै नासन दुरमति हरन कलि मै हरि को नामु ॥
निसि दिनु जो नानक भजै सफल होहि तिह काम ॥२०॥
जिहबा गुन गोबिंद भजहु करन सुनहु हरि नामु ॥
कहु नानक सुनि रे मना परहि न जम कै धाम ॥२१॥
जो प्रानी ममता तजै लोभ मोह अहंकार ॥
कहु नानक आपन तरै अउरन लेत उधार ॥२२॥
जिउ सुपना अरु पेखना ऐसे जग कउ जानि ॥
इन मै कछु साचो नही नानक बिनु भगवान ॥२३॥
निसि दिनु माइआ कारने प्रानी डोलत नीत ॥
कोटन मै नानक कोऊ नाराइनु जिह चीति ॥२४॥
जैसे जल ते बुदबुदा उपजै बिनसै नीत ॥
जग रचना तैसे रची कहु नानक सुनि मीत ॥२५॥
प्रानी कछू न चेतई मदि माइआ कै अंधु ॥
कहु नानक बिनु हरि भजन परत ताहि जम फंध ॥२६॥
जउ सुख कउ चाहै सदा सरनि राम की लेह ॥
कहु नानक सुनि रे मना दुरलभ मानुख देह ॥२७॥
माइआ कारनि धावही मूरख लोग अजान ॥
कहु नानक बिनु हरि भजन बिरथा जनमु सिरान ॥२८॥
जो प्रानी निसि दिनु भजै रूप राम तिह जानु ॥
हरि जन हरि अंतरु नही नानक साची मानु ॥२९॥
मनु माइआ मै फधि रहिओ बिसरिओ गोबिंद नामु ॥
कहु नानक बिनु हरि भजन जीवन कउने काम ॥३०॥
प्रानी रामु न चेतई मदि माइआ कै अंधु ॥
कहु नानक हरि भजन बिनु परत ताहि जम फंध ॥३१॥
सुख मै बहु संगी भए दुख मै संगि न कोइ ॥
कहु नानक हरि भजु मना अंति सहाई होइ ॥३२॥
जनम जनम भरमत फिरिओ मिटिओ न जम को त्रासु ॥
कहु नानक हरि भजु मना निरभै पावहि बासु ॥३३॥
जतन बहुतु मै करि रहिओ मिटिओ न मन को मानु ॥
दुरमति सिउ नानक फधिओ राखि लेहु भगवान ॥३४॥
बाल जुआनी अरु बिरधि फुनि तीनि अवसथा जानि ॥
कहु नानक हरि भजन बिनु बिरथा सभ ही मानु ॥३५॥
करणो हुतो सु ना कीओ परिओ लोभ कै फंध ॥
नानक समिओ रमि गइओ अब किउ रोवत अंध ॥३६॥
मनु माइआ मै रमि रहिओ निकसत नाहिन मीत ॥
नानक मूरति चित्र जिउ छाडित नाहिन भीति ॥३७॥
नर चाहत कछु अउर अउरै की अउरै भई ॥
चितवत रहिओ ठगउर नानक फासी गलि परी ॥३८॥
जतन बहुत सुख के कीए दुख को कीओ न कोइ ॥
कहु नानक सुनि रे मना हरि भावै सो होइ ॥३९॥
जगतु भिखारी फिरतु है सभ को दाता रामु ॥
कहु नानक मन सिमरु तिह पूरन होवहि काम ॥४०॥
झूठै मानु कहा करै जगु सुपने जिउ जानु ॥
इन मै कछु तेरो नही नानक कहिओ बखानि ॥४१॥
गरबु करतु है देह को बिनसै छिन मै मीत ॥
जिहि प्रानी हरि जसु कहिओ नानक तिहि जगु जीति ॥४२॥
जिह घटि सिमरनु राम को सो नरु मुकता जानु ॥
तिहि नर हरि अंतरु नही नानक साची मानु ॥४३॥
एक भगति भगवान जिह प्रानी कै नाहि मनि ॥
जैसे सूकर सुआन नानक मानो ताहि तनु ॥४४॥
सुआमी को ग्रिहु जिउ सदा सुआन तजत नही नित ॥
नानक इह बिधि हरि भजउ इक मनि हुइ इक चिति ॥४५॥
तीरथ बरत अरु दान करि मन मै धरै गुमानु ॥
नानक निहफल जात तिह जिउ कुंचर इसनानु ॥४६॥
सिरु क्मपिओ पग डगमगे नैन जोति ते हीन ॥
कहु नानक इह बिधि भई तऊ न हरि रसि लीन ॥४७॥
निज करि देखिओ जगतु मै को काहू को नाहि ॥
नानक थिरु हरि भगति है तिह राखो मन माहि ॥४८॥
जग रचना सभ झूठ है जानि लेहु रे मीत ॥
कहि नानक थिरु ना रहै जिउ बालू की भीति ॥४९॥
रामु गइओ रावनु गइओ जा कउ बहु परवारु ॥
कहु नानक थिरु कछु नही सुपने जिउ संसारु ॥५०॥
चिंता ता की कीजीऐ जो अनहोनी होइ ॥
इहु मारगु संसार को नानक थिरु नही कोइ ॥५१॥
जो उपजिओ सो बिनसि है परो आजु कै कालि ॥
नानक हरि गुन गाइ ले छाडि सगल जंजाल ॥५२॥
दोहरा ॥
बलु छुटकिओ बंधन परे कछू न होत उपाइ ॥
कहु नानक अब ओट हरि गज जिउ होहु सहाइ ॥५३॥
बलु होआ बंधन छुटे सभु किछु होत उपाइ ॥
नानक सभु किछु तुमरै हाथ मै तुम ही होत सहाइ ॥५४॥
संग सखा सभि तजि गए कोऊ न निबहिओ साथि ॥
कहु नानक इह बिपति मै टेक एक रघुनाथ ॥५५॥
नामु रहिओ साधू रहिओ रहिओ गुरु गोबिंदु ॥
कहु नानक इह जगत मै किन जपिओ गुर मंतु ॥५६॥
राम नामु उर मै गहिओ जा कै सम नही कोइ ॥
जिह सिमरत संकट मिटै दरसु तुहारो होइ ॥५७॥१॥